रिश्ते…दिल से दिल के
एपिसोड 1
[कहानी की शुरुआत]
विनीत जी खिड़की से बाहर गिरती हुई बर्फ को देख रहे थे। शिमला का वो नज़ारा बेहद दिलकश था उसे देखकर उनके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई और वो बोले, "वादा किया था मैंने तुम्हें कि एक दिन तुम्हें यहां ज़रूर लेकर आऊंगा, पूरे शिमला का टूर करवाऊंगा। मैं तो यहां आ गया लेकिन तुम्हें साथ नहीं ला पाया, हमारा वो सपना सपना ही रह गया।"
इसके साथ ही उनके ज़हन में कुछ आवाज़ें आईं…
"विनीत जी! मुझे भी शिमला जाना है। आप मुझे ले चलिए न वहां प्लीज़।"
"हां हां, ले चलूंगा पर पहले हमारे इस प्यारे से बेबी को इस दुनिया में तो आ जाने दो। फिर चलेंगे हम तीनों मिलकर शिमला घूमने।"
"पक्का ना?"
"हां, बाबा! पक्का"
पूरे कमरे में एक खिलखिलाहट गूंज उठी।
विनीत जी जोकि अपने ख्यालों में खोये हुए थे उन ख्यालों को सच समझकर ज़ोर से हँस दिए पर जब उन्हें एहसास हुआ कि वो महज़ उनका ख्याल था तो वो फिर से सामान्य अवस्था में आ गए।
उनके पीछे प्रदिति नीले रंग के सलवार सूट में और उसके ऊपर एक मोटी सी जैकेट पहने हाथ में चाय के दो कप लेकर खड़ी थी। प्रदिति भी उनके दिल का हाल अच्छे से जानती थी।
वो उनके पास आई और एक कप उनके आगे बढ़ाकर बोली, "पापा! चाय"
विनीत जी ने एक मुस्कान के साथ उससे वो कप लिया और उसे बैठने के लिए जगह दी।
चाय के कप को हाथ में पकड़े विनीत जी फिर से बाहर का नज़ारा देखने लगे। पूरे कमरे में एक चुप्पी बनी हुई थी। उस चुप्पी को तोड़ते हुए प्रदिति बोली, "क्यों आप मेरी वजह से अपने परिवार से दूर हो गए?"
प्रदिति के इस वाक्य पर विनीत जी ने उसकी तरफ हैरानी से देखा तो वो बोली, "हां, पापा! वो आपका परिवार था जिसे आप अपनी जान से ज़्यादा चाहते हैं और आपने मेरे लिए उन्हें छोड़ दिया।"
"प्रदिति! बेटा, ये क्या कह रही हो तुम? मैंने किसी के लिए किसी को नहीं छोड़ा। वो भी मेरा परिवार है और तुम भी।", विनीत जी ने प्रदिति के गाल पर हाथ रखकर उसे समझाया तो प्रदिति उनके हाथ को नीचे करके बोली, "नहीं, पापा! मैं आपका परिवार नहीं हूं। अगर ऐसा होता तो मेरी वजह से आपको उनसे दूर नहीं होना पड़ता। मेरी वजह से एक पति से उसकी पत्नी और एक पिता से उसकी बेटी दूर हो गई।" कहते–कहते प्रदिति की आंखें नम हो गईं।
विनीत जी बोले, "बेटा! मैंने तुमसे कहा था ना कि मुझे इस सबके बारे में कोई बात नहीं करनी तो फिर तुम क्यों ये सब लेकर बैठ गई?"
"हां, पापा! मैं जानती हूं कि आप इसके बारे में कोई भी बात नहीं करना चाहते पर मैं आपकी आंखों में उस खालीपन को भी साफ–साफ देख पा रही हूं जिसने मेरी वजह से आपकी जिंदगी में कब्ज़ा कर लिया है।", प्रदिति की बातें सुनकर विनीत जी अपनी जगह से खड़े हो गए और थोड़े गुस्से के साथ बोले, "मैं इसीलिए तुम्हें ये सब नहीं बताना चाहता था क्योंकि मुझे पता था कि इस सब के लिए तुम खुद को ही दोषी ठहराओगी। वो तो पता नहीं कैसे उस दिन मेरे मुंह से वो सारा सच बाहर निकल आया और तुम्हें सब पता चल गया लेकिन मैंने तुम्हें उस दिन भी कहा था और आज फिर कह रहा हूं कि इसमें तुम्हारी कोई भी गलती नहीं है, तुम अपने आप को कुसुरवार मानना बंद कर दो।"
प्रदिति भी उनके पास खड़ी होकर नम आंखों से बोली, "कैसे, पापा! मेरी वजह से किसी की जिंदगी बर्बाद हो गई… मैं कैसे खुद को दोषी ना कहूं?"
"बेटा! गलती तुम्हारी नहीं हम सबकी किस्मत की है जिसने हमारे नसीब में बिछड़ना लिख दिया है।"
"लेकिन, पापा…", प्रदिति की बात को बीच में काटकर ही विनीत जी बोले, "बेटा! मैंने तुम्हारा साथ इसलिए दिया क्योंकि तुम अकेली थी, कोई नहीं था तुम्हारे साथ लेकिन उन दोनों के पास वो दोनों थीं। मेरी पत्नी के पास उसकी बेटी और मेरी बेटी के पास उसकी मां। वो दोनों अकेली नहीं है और अब तो पूरी दिल्ली गरिमा को… नहीं नहीं, मिसेज गरिमा सहगल को जानती है। पूरे दिल्ली में सहगल कंपनीज का ही बोलबाला है। सबकुछ है उनके पास… सबकुछ।", विनीत जी की भी आंखों में नमी उतर आई थी।
प्रदिति उनका चहरा अपनी तरफ करके बोली, "पापा! इंसान चाहे कितना भी कामयाब क्यों ना जाए उसे अपनों की ज़रूरत हमेशा पड़ती है। मां और अक्कू को भी आपकी ज़रुरत हमेशा से है।"
"तो क्या चाहती हो तुम? बता दूं मैं गरिमा को वो सारा सच?", विनीत जी ने जैसे ही कहा, प्रदिति झट से बोली, "नहीं, पापा! अगर उन्हें वो सच पता चला तो…"
"हां, बेटा! वो सच उसकी जान ले लेगा। जो भी हो रहा है वो नियति का खेल है और हम उससे बच नहीं सकते। हम सब नियति के हाथों की कठपुतली हैं जो वो हमसे करवाएगी वो हमें करना ही पड़ेगा। हमारे हाथ बंधे हुए हैं, हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते। इसीलिए तुम अब ये सब मत सोचो और चाय पियो। यहां के मौसम के बारे में तो जानती हो न तुम, झट से गरमागरम चाय को ठंडा कर देता है।"
प्रदिति ने फिर कुछ नहीं कहा और चाय पीने लगी।
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क्रमशः